शुक्रवार, 8 जून 2018

भारतीय सेना को आज मिलेंगे 383 युवा अधिकारी

देहरादून। भारतीय सैन्य अकादमी में पासिंग आउट परेड के बाद शनिवार को 383 कैडेट बतौर अफसर भारतीय सेना का हिस्सा बन जाएंगे। साथ ही सात मित्र देशों के 74 कैडेट भी पास आउट होकर अपने-अपने मुल्कों की फौज का हिस्सा बनेंगे। नेपाल के सेना प्रमुख जनरल राजेंद्र छेत्री बतौर रिव्यूइंग अफसर परेड की सलामी लेंगे। परेड को देखते हुए आइएमए परिसर व आस-पास कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
शनिवार को भारतीय सैन्य अकादमी के ऐतिहासिक ड्रिल स्क्वायर पर कदमताल करने वालों में सर्वाधिक 63 कैडेट उत्तर प्रदेश के हैं। वहीं, उत्तराखंड के 33 कैडेट अंतिम पग भरेंगे। इसके अलावा हरियाणा के 49, बिहार के 35,पंजाब के 29, हिमाचल प्रदेश व महाराष्ट्र के 22-22, राजस्थान के 20, जम्मू-कश्मीर के 17, मध्य प्रदेश के 14, पश्चिम बंगाल के 12, तमिलनाडु के 09, कर्नाटक व झारखंड के 8-8, मणिपुर व दिल्ली के 7-7, केरल के 05, आंध्र प्रदेश के 03, तेलंगना व असम के चार-चार, उड़ीसा के तीन, मिजोरम व चंडीगढ़ के 2-2, गुजरात, छत्तीसगढ़, मेघालय, नागालैंड व त्रिपुरा के एक-एक कैडेट परेड का हिस्सा होंगे। विदेशी कैडेटों में अफगानिस्तान के सर्वाधिक 45, तजाकिस्तान के 13, भूटान के 09, लेसोथो के तीन, तंजानिया के 2, नाइजीरिया व किर्गिस्तान के एक-एक कैडेट शामिल हैं।
नेपाल के सेना प्रमुख ने गोरखा सैनिकों की बहादुरी को किया नमन

नेपाल के सेना प्रमुख जनरल राजेंद्र छेत्री शुक्रवार को देहरादून पहुंच गए। दून में वह नालापानी स्थित "खलंगा स्मारक" गए। उनके साथ नेपाली सेना का उच्चस्तरीय शिष्टमंडल भी शामिल रहा। नेपाल सेना के उच्चाधिकारियों ने खलंगा स्मारक पहुंचकर वीर गोरखा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण व खलंगा वॉर मेमोरियल विकास समिति द्वारा स्मारक के जीर्णोद्वार व रखरखाव किए जाने की सराहना भी नेपाल के सेना प्रमुख ने की है।
उन्होंने कहा कि खलंगा स्मारक गोरखा सैनिकों की बहादुरी का ऐतिहासिक स्थल है। खलंगा स्मारक दुनिया का पहला वॉर मेमोरियल है जिसको किसी देश की सेना ने अपने दुश्मनों की बहादुरी के लिए बनाया था। वर्षों पहले नालापानी में ब्रिटिश सेना व नेपाल के गोरखाओं के बीच युद्ध हुआ था। वीर बलभद्र के नेतृत्व में 60 गोरखाओं ने पांच हजार संख्या वाली ब्रिटिश सेना का एक माह तक डटकर मुकाबला ही नहीं किया बल्कि घुटने टेकने के लिए मजबूर तक कर दिया था। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना के मेजर जनरल रोलो जिलिपी युद्ध के पहले ही दिन हताहत हो गए थे। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना की विजय जरूर हुई, लेकिन गोरखा भी हारे नहीं। गोरखाओं की बहादुरी की स्मृति में ही खलंगा स्मारक बनाया गया है।
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