शुक्रवार, 8 जून 2018

खराब रिजल्ट के लिए शिक्षा विभाग की नीतियां जिम्मेदार

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : सरकारी स्कूलों में दसवीं कक्षा के खराब रिजल्ट के लिए टीचर्स ही नहीं शिक्षा विभाग की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। विभाग की कमियों को गिनाते हुए यूटी कैडर एजुकेशन यूनियन के प्रेसिडेंट स्वर्ण सिंह कंबोज ने शिक्षा सचिव बंसी लाल को पत्र लिखा है। इसमें कंबोज ने बताया कि आठवीं तक किसी भी स्टूडेंट्स को फेल नहीं किया जा सकता है लेकिन जब स्टूडेंट नौवीं में आता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी स्कूल टीचर की होती है। वर्ष 2016-17 में नौवीं का परिणाम बनने के समय विभाग ने स्टूडेंट्स को 15 नंबर एक विषय के लिए ग्रेस मार्क देने के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही सभी पांच विषयों के लिए 45 नंबर ग्रेस मार्क देने के लिए स्कूलों को मजबूर किया गया था। यदि वह ग्रेस मार्क नहीं दिए गए होते तो पढ़ाई में कमजोर स्टूडेंट्स कभी भी दसवीं में नहीं होते और जो परिणाम अभी आया है वह नहीं आता।
इसी प्रकार दूसरी नीति टीचर्स से नॉन टीचिंग वर्किंग कराना है। टीचर्स को राइट टू एजुकेशन के एक्ट 27 के अनुसार सिर्फ स्कूल में पढ़ाने का ही अधिकार है। इसके अलावा वह स्कूल टाइम में कोई अन्य काम नहीं कर सकते है, लेकिन टीचर्स से हर साल मतदाता सर्वे, चाइल्ड मैपिंग सर्वे जैसे कार्य कराए जाते हैं। इसके अलावा जनवरी से लेकर मार्च तक टीचर्स की वर्कशॉप कराई जाती है। इसी साल टीचर्स की वर्कशॉप के अलावा स्टूडेंट्स को फरवरी महीने में साइंस सिटी ले जाने के निर्देश भी स्कूलों को मिले थे।
कंबोज ने पत्र में साफ किया है कि टीचर्स से कराए जाने वाले नॉन टीचिंग कार्यो को जल्द से जल्द बंद करना चाहिए। इसके साथ ही ग्रेस मार्क देना बंद होना चाहिए तभी बोर्ड की परीक्षा का परिणाम बेहतर आ सकता है।
Read Source रिपोर्ट
0डिसलाइक

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ